देश के ग्रामीण क्षेत्रों में खैनी, गुटखा, पान मसाला खाने वाले सबसे अधिक हैं।

क्यों होता है यह ट्यूमर (Neuroendocrine Tumor Reasons)

आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब पंद्रह से सत्रह करोड़ लोग सिगरेट प्रेमी हैं, जबकि तंबाकू के विभिन्न अवयवों के सेवनकर्ता कुल आबादी के बीस से पच्चीस फीसद के बीच हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में खैनी, गुटखा, पान मसाला खाने वाले सबसे अधिक हैं।

हर साल की तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से 31 मई को ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ मनाने की रस्म अदायगी की गई, बिना यह समीक्षा किए कि इस व्यसन से लोक जीवन कितना कैंसर की चपेट में आता जा रहा है। अपने देश की बात करें तो ग्लोबल एडल्ट टोबैको ऑफ इंडिया की रिपोर्ट चिंताजनक है। मुंह के कैंसर के कुल रोगियों का नब्बे प्रतिशत हिस्सा गुटखा, खैनी, तंबाकू, पान मसाला और जर्दा सेवन करने वालों का है। सिगरेट पीने वालों की बीमारी में फेफड़े, गले, हृदय रोग, पेट का कैंसर प्रमुख माना गया है। प्राणघातक तंबाकू में निकोटिन के अलावा क्रोमियम, आर्सेनिक, बेंजोपायीरिनर्स, नाइट्रोसामाइंस जैसे मुख्य हानिकारक तत्त्व पाए जाने का प्रमाण चिकित्सा प्रयोगशाला से सिद्ध है।

आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब पंद्रह से सत्रह करोड़ लोग सिगरेट प्रेमी हैं, जबकि तंबाकू के विभिन्न अवयवों के सेवनकर्ता कुल आबादी के बीस से पच्चीस फीसद के बीच हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में खैनी, गुटखा, पान मसाला खाने वाले सबसे अधिक हैं। सबसे चिंताजनक स्थिति नाबालिग बच्चों की है, जो इस लत के शिकार होते जा रहे हैं। सूचनाएं के मुताबिक चौदह से सोलह वर्ष के सौ में से चार बच्चे इस व्यसन के शिकार हैं। विश्व स्तरीय आंकड़े बताते हैं कि प्रति सात सेकेंड में एक व्यक्ति तंबाकू सेवन के कारण मौत को गले लगा रहा है। तंबाकू उत्पादन से राजस्व आय और इससे जनित कैंसर की बीमारी पर सरकारी खर्चों को देखा जाए तो स्पष्ट है कि आमदनी के मुकाबले खर्च ज्यादा हो रहे हैं और मानवीय क्षति अलग से। कोरोना कोप के बदले माहौल में भारत सरकार को यह समीक्षा करनी चाहिए कि तंबाकू से उत्पन्न कैंसर के निवारण के लिए इसके उत्पादन पर सदा के लिए क्यों न रोक लगाई जाए और इस उद्योग में कार्यरत कर्मियों का सेवा समायोजन अन्यत्र किया जाए।

आभार जनसत्ता