कैंसर इलाज में नया क्या है ?

हाल के बरसों में कैंसर के इलाज में कई तकनीक आई हैं। इनमें खास हैं...
सर्जरी: अब बड़े अस्पतालों में रोबॉटिक सर्जरी की जाती है। यह थ्री-डायमेंशन सर्जरी है यानी इसमें लंबाई-चौड़ाई के साथ कट की गहराई भी नजर आती है। इसमें खून कम निकलता है और गलती की गुंजाइश भी कम होती है। रोबॉट में लगे कैमरों की मदद से सर्जरी ज्यादा सटीक हो पाती है। मरीज जल्दी घर जा सकता है। आम सर्जरी के मुकाबले इसमें एक-डेढ़ लाख रुपये ज्यादा खर्च आता है।
HIPEC: हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनिअल कीमोथेरपी को पेट, ओवरी और कोलोन के कैंसर में इस्तेमाल किया जाता ह। इसमें 42 डिग्री गर्म पानी के साथ कीमो दी जाती है जिससे कैंसर सेल ज्यादा तेजी से मरते हैं। इसके जरिए दवा सीधे सीधे ट्यूमर में डाली जाती है। इसका असर ज्यादा है और साइड इफेक्ट्स काफी कम हैं। आम कीमोथेरपी के मुकाबले इसमें एक-डेढ़ रुपये तक खर्च ज्यादा आता है।
टारगेटिड थेरपी: आम कीमो सारे सेल्स को मारती है जबकि टारगेटिड थेरपी में दवा सिर्फ कैंसर सेल्स को ही टारगेट करती है। लंग्स, किडनी और कोलोन कैंसर में यह खासकर असरदार है। यह टैब्लेट और इंजेक्शन, दोनों तरीकों से दी जाती है। कैंसर के प्रकार और स्टेज के अनुसार इसकी कीमत 5000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये प्रति महीना तक हो सकती है।
इम्यूनोथेरपी: इसमें दवा की मदद से कैंसर एंटीजन के खिलाफ एंटी-बॉडीज़ तैयार की जाती हैं। यह टारगेटिड थेरपी का ही एक हिस्सा है और स्टेज 4 के कैंसर में मरीज की उम्र बढ़ाने में मददगार है। एक बार कैंसर होने के बाद दोबारा होने से रोकने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। कैंसर के प्रकार और स्टेज के अनुसार इसका एक महीने का खर्च 20 हजार से लेकर 5 लाख रुपये तक हो सकता है।
पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट: पहले एक तरह के कैंसर के सभी मरीजों का एक जैसा इलाज किया जाता था, जबकि अब मरीज की स्थिति, दूसरी बीमारियों और किसी दवा के उस पर असर के अनुसार पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट भी तैयार किया जाता है। इसकी कीमत 30-60 हजार रुपये महीने पड़ती है।
जीन प्रोफाइलिंग: इसे जीन मैपिंग भी कहा जाता है। इसमें जीन्स की स्टडी की जाती है और देखा जाता है कि उस जीन की खराबी की आशंका कितनी है। ब्रेस्ट कैंसर होने की आंशका का पता लगाने के लिए किया जाने वाला ब्रेका टेस्ट जीन मैपिंग ही है। दूसरे कैंसरों के लिए जीन मैपिंग के अभी खास नतीजे नहीं आए हैं।
TACE और TARE थेरपी: ट्रांसआर्टिरियल कीमोएंबोलाइजेशन और ट्रांसआर्टिरियल रेडियोएंबोलाइजेशन, इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी ट्रीटमेंट की कैटिगरी में आते हैं। इन्हें खासतौर पर लिवर के कैंसर के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 3 सेंटीमीटर से बड़े ट्यूमर के लिए TACE और TARE तकनीक इस्तेमाल की जाती है। इसमें एंजियोग्राफी करके सीधे ट्यूमर के अंदर दवा डाली जाती है। इस तरह बिना सर्जरी के ट्यूमर खत्म हो जाता है। इसके साइड इफेक्ट्स भी काफी कम हैं। एक सीटिंग का खर्च करीब 1 लाख रुपये पड़ता है। आमतौर पर 1 या 2 सिटिंग की जरूरत होती है।
ट्यूमर एब्लेशन थेरपी: इसमें सूई डालकर रेडियोफ्रिक्वेंस या माइक्रोवेव किरणों की मदद से सीधे कैंसर को जला दिया जाता है। लंग्स, लिवर और किडनी के कैंसर में यह तकनीक ज्यादा असरदार है। एक सिटिंग की कीमत करीब 1 लाख रुपये होती है और आमतौर पर एक सिटिंग इलाज के लिए पर्याप्त होती है।
प्रोटॉन थेरपी: कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए किए जाने वाले रेडिएशन में अब प्रोटॉन का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है, जिसे प्रोटॉन थेरपी का नाम दिया गया है। यह तरीका ज्यादा सटीक तरीके से कैंसर सेल्स को खत्म करता है और साइड इफेक्ट भी कम हैं लेकिन इसकी कीमतें काफी ज्यादा हैं। इस पर करीब 20 लाख रुपये का खर्च आता है। अपने देश में यह तकनीक फिलहाल सिर्फ चेन्नै में अपोलो प्रोटोन कैंसर सेंटर में इस्तेमाल हो रही है।