एडवांस स्टेज के कैंसर मरीज़ों पर क्यों नहीं होता है कीमोथेरेपी का ज़्यादा असर
 
                    मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक लेख में एक सूची तैयार की गई है, जिसमें कहा गया है कि कैंसर के इलाज के दौरान किन दस तौर-तरीकों से बचना चाहिए.
इस सूची को नौ लोगों की एक टीम ने तैयार किया है, जिसमें डॉक्टर और कैंसर के मरीज शामिल हैं. इसमें कहा गया है कि अगर कैंसर के इलाज के दौरान इन दस तौर-तरीकों से बचें तो इसके मरीजों को अधिक फायदा पहुंचेगा.
इस सूची का भारत की नेशनल कैंसर ग्रिड ने भी समर्थन किया है. यह सूची एक तरह से भ्रमों को तोड़ने वाला भी है- जहां कई ऐसे हानिकारक और उन फिज़ूल तरीकों के बारे में बताया गया है, जिसे आमतौर पर कैंसर के इलाज का हिस्सा माना जाता है.
उदाहरण के लिए सबसे पहले मेटास्टिक कैंसर में मरीजों के पैलिएटिव इलाज (मूल कारण के इलाज के बजाय तात्कालिक इलाज जैसे दर्द निवारक देना आदि) मिलने में होने वाली देरी से बचाना है. चौथे चरण के कैंसर को मेटास्टिक कैंसर कहा जाता है. इस चरण में कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने लगता है.
इस लेख में कहा गया है कि विभिन्न शोध और क्लिनिकल ट्रायल यह दर्शाते हैं कि शुरुआती चरण में ही पैलिएटिव इलाज रोग के लक्षणों को नियंत्रित करते हुए दर्द तो कम करता ही है, साथ ही इलाज के खर्च में भी कमी लाता है. इसके साथ ही मरीज के परिवार को भी इससे थोड़ी संतुष्टि मिलती है.
नए अध्ययनों से पता चला है कि इससे मरीज के जीवित रहने की संभावना (सर्वाइवल रेट) भी बढ़ती है. पैलिएटिव इलाज पाने वाले मरीजों पर ट्रीटमेंट का बेहतर असर देखा गया है.
दूसरा काम एडवांस स्टेज के कैंसर मरीजों के लिए कीमोथेरेपी से बचाना है. शोधकर्ताओं का दावा है कि एडवांस स्टेज के कैंसर के मरीजों में कीमोथेरेपी का अधिक असर नहीं होता. एडवांस कैंसर में मरीज के शरीर में सख्त गांठें (ट्यूमर) बन जाती हैं और कमजोरी के चलते कीमो असर नहीं करती. इसके लिए पैलिएटिव इलाज कारगर रहता है.
लैंसेट के इस लेख का शीर्षक ‘चूज़िंग वाइज़ली इंडियाः टेन लो-वैल्यू ऑर हार्मफुल प्रैक्टिसिस दैट शुड बी एवॉयडेड इन कैंसर केयर’ [Choosing Wisely India: ten low-value or harmful practices that should be avoided in cancer care] है.
इस अभियान की शुरुआत अमेरिका और कनाडा में ‘चूज़िंग वाइज़ली’ नाम से हुई थी, जहां नेशनल हेल्थ सिस्टम में शामिल कैंसर के इलाज में शामिल लो-वैल्यू, खतरनाक और व्यर्थ तौर-तरीकों की पहचान की गयी थी.
भारत में नेशनल कैंसर ग्रिड के प्रोजेक्ट के लिए 2017 में एक टास्कफोर्स का गठन किया था, जिसमें इस लेख के नौ लेखक शामिल थे. जहां इनमें से सात डॉक्टर थे, वहीं दो लोग मरीजों की वकालत करने वाले संगठनों के प्रतिनिधि थे.
यह ग्रिड कैंसर नियंत्रण, अनुसंधान और शिक्षा के लिए सुविधाएं मुहैया करवाने में मदद करता है. इसका उद्देश्य समान मानकों को तैयार करना है. 164 कैंसर केंद्र इस ग्रिड का हिस्सा हैं.
ग्रिड से बात करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि संभावित रूप से ठीक होने वाले कैंसर मरीजों के इलाज के लिए ऑन्कोलॉजी टीम से मशवरा किए बिना विचार नहीं किया जाना चाहिए. भारत में आमतौर पर ओरल कैविटी, गर्भाशय, फेफ़ड़े के कैंसर के मामले अधिक हैं और इनके लिए मल्टी-मॉडलिटी थैरेपी (बहु-पद्धति इलाज) की जरूरत होती है, जिसके लिए एक मल्टी-डिसिप्लिनरी (विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञों) टीम की सलाह की ली जानी चाहिए.
विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि जब पारंपरिक रेडियोथेरेपी प्रभावी हो, ऐसे में एडवांस रेडियोथेरेपी तकनीक अनावश्यक हो जाती है. पारंपरिक रेडियोथेरेपी की लागत कम होती है जबकि एडवांस रेडियोथेरेपी अधिक खर्चीली है.
उन्होंने यह भी बताया है कि यह भी गलत धारणा है कि एडवांस तकनीकों से हमेशा मरीज के सर्वाइवल की गुंजाइश बढ़ जाती है. विशेषज्ञों की सलाह है कि ऐसी तकनीकों को चुनने से पहले तकनीक के साथ उसके खर्च के बारे में भी अच्छी तरह सोच लिया जाना चाहिए.
खर्च के बारे में विशेषज्ञों की सलाह सामान्य तर्क पर आधारित है कि अगर कम खर्च में असरकारक इलाज संभव है, तो महंगे इलाज से बचा जा सकता है. यह बात सुनने में सामान्य लगती है लेकिन दुख के समय में परिवार इस पर ध्यान नहीं दे पाते.
इस लेख में कहा गया है कि भारत के मरीज कैंसर के नियमित इलाज के लिए लंबी दूरी की यात्राएं करते हैं. घर के नज़दीक ही इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराना भारत में प्रयोग हो रही कैंसर प्रणाली के लिए एक महत्वाकांक्षी उद्देश्य हो सकता है. कैंसर के इलाज के लिए समुचित नेटवर्क की स्थापना होनी चाहिए.


 
          	                 
          	                 
          	                 
          	                 
          	                 
          	                 
 
               
 
       
         
 
       
         
 
       
         
 
                       
                   
 
                       
                   
 
                       
                   
 
                       
                  