कैंसर घातक बीमारी जरूर है, लेकिन इलाज और कसरत के जरिये इससे जीता जा सकता है.

थकान से लड़ने के लिए पैदल चलना. चिंता में डूबने के बदले पतवार चलना. और ज्यादा ताकत जुटाने के लिए वेट लिफ्टिंग करना. ये थकाने वाली कसरतें हैं और वो भी खासतौर पर तब जब कोई कीमो या रेडिएशन थेरेपी के सहारे कैंसर से लड़ रहा हो. ये बड़ी मददगार होती हैं.
नए शोध साबित कर चुके हैं कि कसरत कैंसर के खिलाफ लड़ती है. जर्मन शहर हाइडेलबर्ग में नेशनल सेंटर फॉर ट्यूमर डिजीज की प्रोफेसर कोर्नेलनिया उलरिष कहती हैं, "हम पक्के तौर पर जानते हैं कि इलाज के दौरान भी अगर कोई नियमित रूप से व्यायाम करता है तो कोई खराब साइड इफेक्ट नहीं होता है, बल्कि यह लगातार रहने वाली थकान के खिलाफ कारगर है. और पहली बार लंबे शोध के जरिये भी पता चला है कि कसरत करने वालों के बचने की संभावना भी ज्यादा होती है."

2012 में यॉर्ग वालश्टाइन को आंत के कैंसर का पता चला. ऑपरेशन के कुछ ही दिनों बाद वो आंत के कैंसर वाले 400 लोगों वाले एक स्पोर्ट्स प्रोग्राम में शरीक हो गए. हाइडेलबर्ग मेडिकल कॉलेज में वैज्ञानिकों ने हर रोज इन लोगों की शारीरिक गतिविधि पर नजर रखी और देखा कि कैंसर पर उसका क्या असर पड़ता है. वैज्ञानिकों ने उन्हें नॉर्डिक वॉकिंग की सलाह दी. शुरू में यॉर्ग बहुत उत्साहित नहीं थे, "शुरू में जाहिर तौर पर मैं दुखी हुआ और मुझे लगा कि ये भी वही पुराने ढर्रे वाली कहानी है. मैं अपने घर से बुजुर्गों को दो छड़ियों के साथ जंगल की ओर जाते हुए देखता था और मुझे यह जरा भी रोचक नहीं लगता था."
मन मारकर यॉर्ग ने नॉर्डिक वॉक शुरू किया. हफ्ते में कम से कम दो बार. और अच्छा असर होने लगा, शारीरिक और मानसिक मोर्चों पर. अब यॉर्ग नियमित रूप से नॉर्डिक वॉक पर जाते हैं. यॉर्ग अपने अनुभव का हवाला देते हुए कहते हैं, "मैं मुक्त और अच्छा महसूस करने लगा, अंदर भी उत्साह जगने लगा."

अब वह नियमित रूप से चेक अप के लिए जाते हैं. उनके खून की जांच होती है. सेहतमंद लोगों की जांच से पता चला है कि स्वस्थ रहने में घूमने फिरने या पैदल चलने की बड़ी भूमिका है, इससे शरीर की कई गतिविधियां फिट रहती हैं.  कैंसर विशेषज्ञ प्रोफेसर कोर्नेलिया उलरिष इसका कारण बताती हैं, "सबसे पहले हमारे इम्यून सिस्टम में बदलाव आता है. निश्चित तौर पर किलर कोशिकाएं ज्यादा बनती हैं और फैसली हैं, वे संक्रमण के खिलाफ बेहद कारगर हो सकती हैं. साथ ही लंबे समय तक ट्रेनिंग का असर भी दिखता है, डीएनए रिपेयर फंक्शन बेहतर होता है और आप शरीर को होते कम नुकसान को भी देख पाते हैं."

सिर्फ खून में अंतर नहीं दिखता बल्कि पूरे शरीर में फर्क पड़ता है. प्रोफेसर उलरिष कहती हैं, "आंत के कैंसर के मामले में ही हम वसा ऊत्तकों जांच कर रहे हैं, ये आंत को घेरे रहते हैं और आंत के कैंसर के विकास से इनका भी कुछ संबंध है. हाल ही में हमने जांचा है कि मरीजों में ट्यूमर की स्टेज पर वसा ऊत्तक कैसा व्यवहार करते हैं."

हाइडेलबर्ग में हुए शोध ने साबित किया है कि एक्सरसाइज थेरेपी की मदद से कैंसर के रोगियों की नई ऊर्जा मिलती है. उनका शरीर भी बेहतर होता है और मानसिक रूप से भी वह ज्यादा दृढ़ हो जाते हैं. कैंसर जैसी बीमारी से लड़ाई के दौरान यही सबसे अहम औजार हैं.