आखिर क्या है ये प्लाज्मा सेल्स का कैंसर
मेदांता ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल भारत में कैंसर के 15 लाख केस सामने आते हैं। ASCO (अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी) के मुताबिक, इस साल अमेरिका में मल्टीपल माइलोमा के 32.27 हजार पेशेंट सामने आए। इनमें 17.53 हजार पुरुष और 14.74 हजार महिलाएं हैं।
- शरीर में सेल बढ़ने से कैंसर का खतरा होता है। ये किसी भी भाग में हो सकता है। ब्लड कैंसर की शुरुआत ब्लड टिश्यू से होती है। इसका असर पहले इम्युन सिस्टम पर होता है।
- अब तक तीन तरह के ब्लड कैंसर रिपोर्ट किए गए हैं। इनमें लिंफोमा, ल्यूकेमिया, और मल्टीपल माइलोमा शामिल हैं। भारत में सबसे ज्यादा 64% लिंफोमा, 25% ल्यूकेमिया और 11% मल्टीपल माइलोमा के पेशेंट सामने आए हैं।
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- मल्टीपल माइलोमा रेयर कैंसर है। पेशेंट को इस बीमारी का पता आसानी से नहीं चल पाता है। ये नॉर्मल प्लाज्मा सेल बोन मेरो में पाया जाता है। ये इम्युन सिस्टम का मुख्य भाग होता है। इम्युन सिस्टम कई सारे सेल से मिलकर बनता है, जो वायरस और बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं।
- इसके अलावा लिंफोसाइट सेल (लिंफ सेल), जो व्हाइट ब्लड सेल है। ये भी इम्युन सिस्टम में पाए जाते हैं। ये दो तरह के होते हैं, पहला T सेल और दूसरा B सेल। ये सेल बॉडी के लिंफ नोड्स, बोन मेरो और ब्लड स्ट्रीम में पाए जाते हैं।
- इन्फेक्शन B सेल को रिस्पॉन्स करता है, तो ये प्लाज्मा में बदल जाता है। प्लाज्मा सेल एंटीबॉडी बनाता है। इसको इम्युनोग्लोबिन कहते हैं। ये बॉडी के जम्स पर अटैक कर उसे खत्म करता है। प्लाज्मा एक सॉफ्ट टिश्यू की तरह बोन मेरो में होता है। इसकी मदद से नॉर्मल बोन मेरो में रेड सेल, व्हाइट सेल और प्लेटलेट्स पाई जाती है।
- प्लाज्मा सेल में कैंसर होने से कंट्रोल के बाहर हो जाता है। इसे ही मल्टीपल माइलोमा कहा जाता है। इससे प्लाज्मा सेल में एब-नॉर्मल प्रोटीन (एंटीबॉडी) डेवलप होने लगती है। इसके कई नाम हैं, जैसे- मोनोक्लोनल, इम्युनोग्लोबिन, मोनोक्लोनल प्रोटीन, M-स्पाइक या पैराप्रोटीन। इसके अलावा कई तरह के सेल डिसऑर्डर होते हैं, जैसे- मोनोक्लोनल गैमोपैथी ऑफ अन-सर्टेन सिग्निफिकेंट (MGUS), स्मोल्डरिंग मल्टीपल माइ-लोमा (SMM), सोलिट्री प्लाज्मा साइटोमा और लाइट चैन एमीलोइडोसिस।
- इस बीमारी का ट्रीटमेंट हर बार सही हो, ऐसा जरूरी नहीं है। अगर मल्टीपल माइलोमा धीरे-धीरे डेवलप होने लगता है, तो इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं। डॉक्टर पेशेंट को मॉनिटर पर रखते हैं। वे इलाज में जल्दबाजी नहीं करते हैं।
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प्राइमरी डायग्नोसिस ?
- मल्टीपल माइलोमा में साइटिका-पेन, स्पॉन्डिलाइटिस-पेन, हड्डियों में जलन, करंट जैसा लगना, जरा में फ्रैक्चर होने जैसी समस्या बढ़ जाती है। इसका पहला डायग्नोसिस ऑर्थोपेडिक सर्जन करता है। इसमें जो सैंपल लिए जाते हैं, उन्हें इलेक्ट्रोफोसिस टैंक में डालकर करंट के अगेंस्ट रन कराने पर प्रोटीन अलग-अलग पोजीशन ले लेता है।
- इसमें प्रोटीन के स्टेटस को देखा जाता है। अगर प्रोटीन का पीक ज्यादा होता है, तो कंडीशन ज्यादा सीवियर होती है।
- एक्सपर्ट्स की मानें तो इन समस्या में बोन डैमेज, रीनल फेलियर, ब्लड फिल्टर न होना और ब्लॉकेज होने लगते हैं। कई बार ये बीमारी बहुत तेजी से फैलती है।
- इस बीमारी में कई टेस्ट होते हैं, जैसे- यूरीन, इलेक्ट्रोफोसिस, इम्नो-इलेक्ट्रोफोसिस, और इम्युनोग्लोबिन। अगर ये समस्या बढ़ जाती है तो आखिर में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की नौबत आ जाती है।
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