कैंसर का इलाज करवाते करवाते आज दूसरों के लिए एक मिसाल बन गए।
दिल्ली से सटे फरीदाबाद में रहने वाले अरुण गुप्ता कभी एक बड़ी कंपनी में सीएफओ के पद पर थे। परिवार में दो बेटियों और पत्नी के साथ ज़िदगी की राह बड़ी आसानी से कट रही थी, लेकिन ‘कैंसर’ की बीमारी उनके लिये मुसीबतों का पहाड़ लेकर आई। ‘कैंसर’ के इलाज में पहले उनका काफी पैसा खर्च हुआ और उसके बाद उनकी नौकरी भी चली गई। बावजूद उन्होने हिम्मत नहीं हारी और वो ना सिर्फ अपनी बीमारी से आज भी लड़ रहे हैं, बल्कि अपने जैसे कैंसर के दूसरे मरीजों की मदद भी कर रहे हैं। ‘विन ओवर कैंसर’ के जरिये अरुण गुप्ता कैंसर मरीजों के आश्रितों को अलग अलग तरह के रोजगार दिलाने में मदद कर रहे हैं। इसके अलावा उनकी पत्नी कविता गुप्ता ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित मरीजों को खास तरह की ‘प्रोस्थेटिक ब्रा’ मुफ्त में उपलब्ध करा रही हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल 14.5 लाख मरीज कैंसर का शिकार होते है। इनमें से करीब 8 लाख लोगों की उम्र 25 से 40 साल के बीच के होती है और ये वो उम्र होती है जब इंसान पर अपने परिवार की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी होती है। यही वजह है कि बीमारी के कारण 95 प्रतिशत लोगों का रोजगार छूट जाता है। देश में कैंसर के इलाज की सुविधा केवल 125 शहरों में है इनमें से 75 प्रतिशत मरीज 5 मैट्रो शहरों में अपना इलाज कराते हैं। ऐसे में मरीजों को अपना काम छोड़कर इन शहरों में महीनो, सालों इलाज कराना पड़ता है। ऐसे में जिस मरीज के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी होती है उसके लिए इस इलाज को वहन करना काफी मुश्किल होता है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल करीब 6 लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी के कारण गरीबी के रेखा से नीचे चले जाते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अरुण गुप्ता ने ऐसे परिवारों की मदद के बारे में सोचा और ‘विन ओवर कैंसर’ की शुरूआत की।
फरीदाबाद में रहने वाले अरुण गुप्ता सितम्बर, 2011 में पता चला कि उनको क्रॉनिक लिम्फोसाईटिक ल्यूकेमिया नामक कैंसर है। इसमें वाइट ब्लड सैल अचानक बहुत बढ़ने लगते हैं और हीमोग्लोबिन के सैल और प्लेटलेट्स को कम करने लगते है। आगे चलकर ये बीमारी ब्लड कैंसर के तौर पर सामने आती है। अरुण अपनी पत्नी कविता के साथ मिलकर कैंसर के मरीजों की तब से काउंसलिंग कर रहे हैं, जब उनको पता चला कि उनको भी कैंसर है। शुरूआत में वो लोगों से बात कर उनकी परेशानियां जानने की कोशिश करते थे। इससे उनको पता चला कि हर कैंसर मरीज की समस्याएं एक जैसी हैं। क्योंकि कैंसर का इलाज काफी महंगा होता है इस कारण कई परिवारों की जमा पूंजी खत्म हो जाती है, घर बिक जाते हैं, नौकरियां छूट जाती हैं और इलाज के बाद ऐसे मरीजों को कोई काम भी नहीं देता। इस वजह से वो डिप्रेशन में चले जाते हैं। लेकिन जब सितम्बर 2015 में डाक्टरों ने अरुण को बताया कि उनका कैंसर चौथे स्टेज में पहुंच गया है इसलिये उनको अस्पताल में रहकर ही इलाज कराना होगा। इस तरह अरुण जनवरी, 2016 से फरीदाबाद के ‘सर्वोदय अस्पताल’ में डॉक्टर सुमन गुप्ता की देखरेख में किमोथेरेपी लेने लगे। इस दौरान डॉक्टर ने उनको बताया कि जिस स्टेज में उनका कैंसर पहुंच गया है वहां पर 10 प्रतिशत लोग ही सर्वाइव कर पाते हैं।
इसके बाद उन्होने ऐसे लोगों के लिए काम खोजने शुरू किये जो वो घर बैठे या बाहर जाकर कर सकें। गुड़गांव की ऐसी ही एक महिला को उन्होने होम अटेंडेंट का काम दिलवाया। उस महिला के पिता को कैंसर था और उसने ढ़ाई तीन साल तक उनकी सेवा की थी। इस वजह से उस महिला को कैंसर मरीजों की कैसे देखभाल की जाती है, कैसे उन्हें दवाईयां दी जाती हैं, इसका काफी अनुभव हो गया था। आज वो महिला महीने भर में 25 से 30 हजार रुपये कमा लेती हैं। इसी तरह अरुण गुप्ता की मदद से दिल्ली की एक महिला टिफिन सेवा चला रही है और जबकि एक आदमी को उन्होने ई-रिक्शा दिलवाया है। ये दोनों अब 30 हजार रुपये महीना तक कमा रहे हैं।